Monday, August 11, 2014

लालू-नीतिश का भरत मिलाप.........


ये सियासत की दो विपरीत धाराओं का मधुर संगम है.... ये संभावनाओं की तलाश में बहता विशाल सियासी समंदर है... ये अवसरवादिता को ज़रूरत का जामा पहनाने वाला मंज़र है... इसे जो ना समझा वो नासमझ- जो समझ गया वो कलंदर है।... ये वही लालू और नीतिश हैं जो पिछले 20 साल से एक दूसरे को पानी पीकर पीकर कोसते रहे... एक दूसरे को अवसरवादी करार देते रहे... एक दूसरे की शक्ल तक ना देखने की बात करते रहे... लेकिन आज एक दूसरे के पहलू में ऐसे सिमटे के गले लगे बिना ना रह सके।... दोनों के चहरों का रंग सुर्ख सेबों की तरह हो गया... आज ये सुर्खी खुशी की थी... आज की मुलाकात बहुत खास और ऐतिहासिक थी... इस मुलाकात के पीछे की कोशिशें जितनी बढ़ी थीं.. उससे भी बढ़ी थी इस मुलाकत की ज़रूरत।....
लोकसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद ही नीतिश कुमार के गुमान का बुलबुला फूंट गया था... उन्हें पता चल गया के सुशासन के नाम का पीपा पीटने से अब फायदा नही मिल पायेगा। ... एक ही सबज़ी बार बार किसी को भी पसंद नही आती तो भला जनता को क्या आयेगी... लेकिन सबज़ियां तो और हैं नहीं।... लेहाज़ा नीतिश ने नए मसालों और ईंधन की जुगाड़ की है... कांग्रेस से हाथ मिलाया है- लालू को गले लगाया है... और साफ कर दिया है कि बिहार की 10 सीटों पर होने वाले चुनाव के लिए... तीनों दोस्त एक साथ मिलकर दुश्मन का मुकाबला करेंगे.. बीजेपी को धूल चटा देंगे।...
बीजेपी को हराने के लिए कांग्रेस, राजद, और जदयू ने हाथ मिलाया है... लिहाज़ा बीजेपी नेताओं की पेशानी पर बल आ जाना भी लाज़िमी है ...क्योंकि लोकसभा चुनाव के बाद जनता को अच्छे दिन भी दिखाई नहीं दिये और मंहगाई भी और ज़्यादा बढ़ गई।... लेकिन इस गठबंधन को उपचुनाव में बीजेपी के खिलाफ अगर उम्मीद के मुताबिक कमयाबी नहीं मिली ...तो क्या लालू और नीतिश के रिश्तों में आई ये गर्माहट कायम रहेगी ..या फिर ये दोस्ती ठंडी पड़ जायेगी ?.. इंतेज़ार कीजिए ...सब साफ हो जायेगा....क्योंकि अगला मौसम ठंड का ही है।...

.................आदिल खान... ............

Saturday, April 12, 2014

मुसलमान और सियासत

मुसलमान हैं या धार्मिक उत्सव का लंगर.. कोई बांटना चाहता है.. कोई लूटना चाहता है.. कोई लुटवाने में मदद करता है।.. चक्कर क्या है.... ये चुनाव आते ही, कोई पुराने ज़ख्म कुरेद कर हमदर्दी के वोटों की संभावनाएं तलाशने लगता है.... कोई ये कह कर चूल्हे पर पक रही चाय की तरह मुसलमानों को उबालने की कोशिश करता है कि... उनको आबादी के हिसाब से इस मुल्क में उनका हक़ नहीं मिला।.. कोई आरक्षण का ख्वाब दिखा कर ग़ायब हो जाता है... कोई मुसलमानों की हालत जानने के लिए कमेटी गठित कर देता है... और अब तो मार्केट में एक नया वादा आया है... कल तक मदरसों को आतंकियों की ट्रेनिंग का अड्डा मानने वाले कह रहे हैं .. कि मदरसों का आधुनिकीकरण करेंगे।... कमाल है... सियासत है या चुनावी चकल्लस.. कुछ भी बोल कर तालियां बटोर लो बस।.... असल में गलती इन सबकी नहीं है... गलती खुद उस कौम की है.. जो उम्मीदों का गांजा पीकर 5 साल तक खुमारी की नींद सोती है।... जब हम उधार देकर याद रखते हैं तो फिर वोट देकर क्यों भूल जाते हैं... सवाल करना सीख ले कोई, तो दिलासों और झूठे वादों की मंडी में अकाल पड़ जाता है हुज़ूर।..... मुसलमानों की हालत के ज़िम्मेदार मुसलमान खुद हैं.. यकीन न हो तो सिर्फ दिल्ली का रुख कीजिए.. लाल किला जाकर 10 रुपये का टिकट लीजिए.. और म्यूज़ियम में रखे ताज, तलवारों और लिबासों में अपने पुरखों का इतिहास टटोल लीजिए... एहसास हो जायेगा आपके अंदर क्या कमी है।.... अगर बात समझ आ जाये तो ठीक... और ना समझ आये तो इतना और समझ लीजिएगा... कि इस बार फिर कोई बहन जी, कोई नेता जी, कोई शहज़ादे, कोई साहेबज़ादे, कोई पितामाह, कोई मौलाना, कोई दीदी, कोई दीदा, कोई नदीदा, कोई चाचा और कोई भतीजा आपको उल्लू बनाकर अपना उल्लू सीधा कर ले जायेगा।।..

आदिल खान....

Saturday, March 22, 2014

यार मेरे हिंदुस्तान...

प्यारे हिंदुस्तान कैसे हो...जानता हूं कि आजकल परेशान हो तुम.. बल्कि परेशान की जगह तुम्हें हैरान कहूं तो ज़्यादा मुनासिब होगा। तुम्हारा परेशान होना वाजिब भी है, पांच साल बाद बहुत से चेहरों को अपने हर एक कोने और ज़ररे पर फिर से भ्रमण करता देख तुम विचलित भी हो रहे होगे और तुम्हे गुस्सा भी आ रहा होगा।... कोई नही.. बुरा वक्त है.. टेंशन इत्तु सी भी मत लो.. टल जायेगा ये वक्त भी.. थोड़े दिन गले फाड़े जायेंगे, नारे लगाए जाएंगे, हवा हवाई वादे और सीले हुए पटाख़ो जैसे दावे किये जाएंगे.. फिर सब शांत हो जायेगा.. चुनाव खत्म हो जायेगा।.. कुछ जीत कर राजधानी चले जाएंगे, कुछ बयान बहादुर बन जाएंगे और बाकी फिर से पांच साल का इंतेज़ार करने में जुट जायेंगे।.. जानता हूं तुम इस शोर शराबे के खत्म होने के कई दिनों बाद तक तकलीफ में रहोगे, हर लम्हा अपनी जनता की आंखों से बहोगे, तिल मिलाओगे, गुस्सा भी करोगे, लेकिन फिर शांत हो जाओगे.. बहुत भोले और मासूम हो न, बहुत बड़ा दिल जो है तुम्हारा.. तभी बार बार ना चाहते हुए भी यकीन कर लेते हो झूठे वादे करने वालो का।.. मगर यार हिंदुस्तान एक बात बताओ... ये सब सहते रहना तुम्हारी मजबूरी है या फिर इस सबकी आदत पड़ गयी है तुम्हे.. या फिर तुम्हे एहसास हो गया है कि अबतुम कुछ कर नही सकते... पता नही क्या सोचते होगे तुम अपने बारे में.. मगर जहां से मैं देखता हूं वहां से मुझे तो तुम योद्धा नज़र आते हो.. ना जाने कितनी ही रियासतों और हुकूमतों के तख्त पलटे हैं तुमने.. न जाने कितने ही सिंहासन उखाड़ फेंके हैं.. ना जाने कितने ही आंदोलनों और सत्याग्रह को जन्म दिया है तुमने.. फिर क्या हो गया तुम्हें.. तुम तो पहले ऐसे कभी न थे जैसे अब दिखाई देते हो।.. वो धार, वो हनक, वो धमक, वो रुतबा, वो इंतेकाम लेने का जज़्बा कहां गया तुम्हारा जो तुम्हारी पहचान हुआ करता था।.. डियर हिंदुस्तान कुछ सोचों.. परेशान और हैरान होने से बहतर है... अपनी ताकत का एक बार फिर से एहसास कराओ सबको... बस यार इतनी सी बात मान लो, तो मैं भी कम से कम इस मुद्दे पर ज्ञान झाड़ने से तो बच जाऊं।...

तुम्हारा हमदर्द दोस्त आदिल....

Wednesday, March 5, 2014

कौन जायेगा दिल्ली ?

तो आखिरकार लोकसभा चुनाव की तारीखें घोषित हो ही गई।.. दुनियां के सबसे बड़े लोकतंत्र की सबसे बड़ी सभा का चुनाव 9 चरणों में होगा और फैसला आयेगा 16 मई को.. ये फैसला किसके हक़ में आयेगा ज़रा इस गणित को समझने की कोशिश करते हैं। इसमें कोई दो राय नहीं कि इस समय देश में मोदी की लहर है और इसी लहर के बहाव में बीजेपी NDA नाम की कश्ती पर सवार होकर दिल्ली की सत्ता तक पहुंचना चाहती है।. बीजेपी जानती है कि ये सफर उतना आसान नहीं है जितना की नज़र आ रहा है... बीजेपी के दिग्गज इस सफर में आने वाले ज्वार भाटों और बाकी कठनाईयों से भलीभाति परिचित हैं,.. और वो जानते हैं कि अगर ज़रा सी भी लपारवाही हुई तो NDA  की कश्ती रासता भटक कर अपनी मंज़िल से दूर हो जायेगी.. और फिर अगले सफर की शुरुआत के लिये उसे 5 साल तक इंतेज़ार करना पड़ेगा। बीजेपी ये इंतेज़ार कर नहीं सकती लेहाज़ा वो नए-पुराने मल्लाहों के सहारे अपनी कश्ती को दिल्ली तक ले जाने की कोशिशों में लगी है।. NDA की कश्ती पर जिन ताज़ा तरीन मल्लाहों की भर्ती हुई है उसमें रामबिलास पासवान, कलयाण सिंह, रामदास अठावले, उदित राज कुछ ऐसे नाम हैं जो अपने हुनर में महिर हैं।.. बात अगर हक़ीकत की ज़मीन पर बात करें तो बीजेपी को लोकसभा चुनाव में जिन बड़े राज्यों से अच्छी खबर आने की उम्मीद हैं वो हैं उत्तर प्रदेश, राजस्थान और मध्य प्रदेश।.. यूपी को छोड़ बाकी दो राज्यों में बीजेपी की सरकार है.. उम्मीद है कि बीजेपी को वहां मज़बूती मिलेगी... लेकिन क्या यूपी का जनमानस बीजेपी के चेहरे पर मुस्कुराहट बिखेरेगा ? बड़ा सवाल है।.. सबसे ज़्यादा लोकसभा सीटों वाले इस प्रदेश ने देश को सबसे ज़्यादा प्रधानमंत्री दिए... और संयोग है कि एक बार फिर प्रधानमंत्री की कुर्सी पर नज़र गढ़ाये 4 बड़े नेता इसी प्रदेश से चुनाव लड़ेंगे.. नरेंद्र मोदी इनमें से पहला नाम होंगे अगर वो यूपी से चुनाव लड़ते हैं तो,, बाकी के नाम राहुल गांधी, मुलायम सिंह और मयावती।.. मुलायम सिंह और मायावती तीसेरे मोर्चे या त्रिशंकु लोकसभा वाले हालात में अपनी दावेदारी पेश कर सकते हैं क्योंकि प्रधानमंत्री बनने के ख्वाब ये दोनों ही नेता देखते हैं। अगर कुछ विश्वसनीय चुनावी सर्वेक्षणों की मानें तो मुज़फ्फरनगर दंगों और बेकाबू गुंडागर्दी की तोहमतों के बावजूद यूपी की अखिलेश सरकार को लोकसभा चुनाव में बहुत ज़्यादा नुकसान होता नहीं दिख रहा.. और सूबे में बीजेपी को मिलने वाला फायदा कांग्रेस और बीएसपी के कोटे से आता दिख रहा है... यानि सूबे में सीधी टक्कर बीजेपी और समाजवादी पार्टी के बीच है... लेकिन एक दल और है जो एंटी कांग्रेस वोट काट कर बीजेपी की नींदे हराम कर सकता है...आम आदमी पार्टी यानि राजनीतिक दुनियां का नया घोड़ा, जो भले ही रेस लगाते हुए 7 रेसकोर्स न पहुचे मगर दूसरे घोड़ो की रफतार को अपनी तिरछी चाल से धीमा ज़रूर कर सकता है और हो सकता है कि बीजेपी को तो मंज़िल तक पहुंचने ही न दे।..दिल्ली विधानसभा चुनाव में आपको गंभीरता से न लेने का मज़ा बीजेपी चख चुकी है, लेहाज़ा इस बार बीजेपी सतर्क है।..बिहार का गणित कहता है कि कांग्रेस और बीजेपी में से किसी का जादू नहीं चलेगा,, बल्कि क्षेत्रीय दल ही बाज़ी मारेंगे... असली लड़ाई नीतिश कुमार की जेडीयू और लालू की आरजेडी के बीच होगी। लेकिन इन दोनों की जीत के लिये मुस्लिम वोट हमेशा से एक बड़ा फैक्टर रहा है और अगर इन दोनों पार्टियों के बीच मुस्लिम वोट सही अनुपात में बंट गया तो फिर फायदा बीजेपी को मिलेगा.. क्योंकि बीजेपी के साथ दलितों के बड़े नेता रामबिलास पासवान का नाम जुड़ चुका है.. यानि मुकाबला यहां भी दिलचस्प होगा।. तमिलनाडू में जयललिता की हवा है जिनका रुझान बीजेपी और मोदी की तरफ है,,, पश्चिम बंगाल से ममता बनर्जी भी चुनाव बाद बीजेपी को ताकत दे सकती हैं... आंध्र प्रदेश के बंटवारे से नराज़ YSR कांग्रेस सुप्रीमों जगन मोहन रेड्डी कांग्रेस से बदला लेने के लिए NDA की ज़ीनत बड़ा सकते हैं।.. यानि कुल मिलाकर बीजेपी और मोदी की हवा में दम है... लेकिन तीसरे मोर्चे में शामिल दल और बाकी के दूसरे दल भी बीजेपी की राह का रोड़ा बन सकते हैं....और ऐसा भी हो सकता है कि भारत की सबसे बड़ी और पुरानी पार्टी होने के बावजूद अंडरडॉगसमझी जा रही कांग्रेस बाज़ी मार ले जाए.. सरकार बना कर ना सही तो बाहर से समर्थन देकर तीसरे मोर्चे की सरकार बनवा कर ही सही.... क्योंकि कांग्रेस की तो आधी जीत इसी में ही हो जायेगी कि बीजेपी दिल्ली के सिंहासन तक न पहुचे और मोदी की हवा निकल जाये।... चलिए देखते हैं क्या होगा.. मुक़ाबला तो यकीनन दिलचस्प होना है......
                             आदिल खान.......


Saturday, February 22, 2014

राजनीति के फॉर्मूले

रसायन विज्ञान की प्रयोगशाला में तरह तरह के रसायनों के मिश्रण से उठते बुलबुले... चटखती- भभकती टेस्ट ट्यूब, तरह तरह की गैसों की उठती खुशबू.. इस बात की तस्दीक के लिए काफी हुआ करती थी..कि प्रयोगशाला में प्रोफेसर साहब छात्रों को कोई नया फॉर्मूला बनाने की तरकीब सिखा रहे हैं।... लेकिन वक्त बदल चुका है.. फॉर्मूले अब सिर्फ रसायन विज्ञान की भभौती नही... अब तो राजनीतिक पार्टियां भी फॉर्मूला ईजाद करने की बड़ी प्रयोगशालाएं बन चुकी हैं.. और इन प्रयोगशालाओं में कम्पटीशन चल रहा है साहब.. कम्पटीशन रोज़ नये नये और दूसरों से बहतर फॉर्मूले लाने का।.. अब बीजेपी भी अपनी प्रयोगशाला से राजस्थान में एक नया फॉर्मूला लेकर आई है........ फार्मूला ये है कि आने वाले लोकसभा चुनाव में टिकट बंटवारा.. पार्टी के कार्यकर्ताओं.. सबंधित लोकसभा क्षेत्र के पार्टी पदाधिकारियों.. और मौजूदा व पूर्व विधायकों से रायशुमारी के बाद लिया जायेगा।..बीजेपी के लिए इस फॉर्मूले को ईजाद करने वाले साइंटिस्ट का नाम है कप्तान सिंह सोलंकी.. इसी लिए इस फार्मूले को सोलंकी फार्मूला भी कहा जा रहा है।.. कप्तान सिंह सोलंकी बीजेपी प्रदेश प्रभारी हैं.. लिहाज़ा अपने कंधे पर रखी जिम्मेदारियों की तलवार की धार का अंदाज़ा उन्हें बखूबी है... वो जानते हैं कि लोकसभा चुनाव में पार्टी की बहतर परफामेंस ही ये तय करेगी.. कि विधानसभा चुनाव में बीजेपी को मिली प्रचंड जीत कोई तुक्का नही थी।.. लेहाज़ा बहुत सध कर चलना हैं.. सबको साथ लेकर चलना हैं.. क्योंकि ज़रा सा भी विरोध पार्टी की फज़ीहत का बाइस बन सकता है... और फज़ीहत फायदा नही..हमेशा नुकसान देती है।. इसीलिए लोकसभा सीटों के टिकट बटवारे के लिए रायशुमीरी का फॉर्मूला लेकर आये हैं साइंटिस्ट सोलंकी।..ऐसा नही है कि ऐसे फॉर्मूले पहली बार मार्किट में आये हैं... इससे पहले भी कई और राजनीतिक दलों के जोशीले साइंटिस्ट.. राजनीतिक व्यवस्थाओं को बदलने की नियत से फॉर्मूले ला चुके हैं।.. कांग्रेस के उपाध्यक्ष राहुल गांधी भी 2013 विधानसभा चुनाव से पहले कुछ फॉर्मूले लाये थे... जिनकी चुनाव से पहले ही हवा निकल गई.. बावजूद इसके राहुल बाबा ने लोकसभा चुनाव में संशोधित फॉर्मूला दिया है.. जिसका नाम है प्रीपोल फॉर्मूला ।...लेकिन राजनैतिक फॉर्मूलों की बात करें तो इसके जनक अरविंद केजरीवाल माने जाते हैं.. दिल्ली की सत्ता पर काबिज़ होकर केजरीवाल अपने फॉर्मूले का पेटेंट करा चुके हैं... यानि बाद के सारे फॉर्मूले ओरिजनल नहीं बल्कि आप की पाईरेटिड कॉपी नज़र आती हैं।...खैर.. दावे और तर्क सबके अपने अपने हैं... राहुल गांधी के पिछले फॉर्मूले कांग्रेस की दशा और दिशा को सुधार नही सके... अरविंद केजरीवाल अपने फॉर्मूलों का पेटेंट पहले ही करा चुके हैं.... और अब बीजेपी चुनावी समर में कूदने के लिए एक फॉर्मूला लाई है।.... बहरहाल ...अपने फॉर्मूले को कामयाब फॉर्मूला बताने के लिए कोई कुछ भी बोले.. कोई कितने भी दावे कर ले...लेकिन लोकतंत्र में तो फॉर्मूला वही हिट है जो सत्ता का स्वाद चखाये।... 

                                                        आदिल खान 

Sunday, February 16, 2014

वंशवाद और दंशवाद दोनों तरह की राजनीतिक नाटक मंडलियों के प्राइम कैरक्टरों की आखों में केजरीवाल नाम का कुरकुरा सुरमा बुरी तरह से खटक रहा है।... 

Monday, February 10, 2014

दिल्ली एक शहर - एक इंकलाब (मेरी कलम से)

              दिल्ली एक शहर - एक इंकलाब (मेरी कलम से)

दिल्ली उम्मीदों से भरा एक ज़िन्दा दिल शहर... इसकी मिट्टी से उठने वाली खुशबू में ही ज़िन्दादिली है।... ये शहर रात के वक्त भी जागता है.. सुबह को दौड़ लगाता है, दोपहर को शिफ्ट चेंज करता है, शाम को किसी चाय के स्टॉल पर गप्पे लड़ाता है, और रात से पहले टीवी के सामने आसन जमा लेता है, ये शहर ऐसा ही है, बिज़ी बिज़ी सा.. झुंझलाता, मुस्कुराता, मगर लगातार चलता जाता- ये शहर ऐसा ही है।... ये रौनकें हमेशा से ही इस शहर की तहज़ीब का हिस्सा रही हैं, पहले तुर्क और फिर मुग़लो को भी दिल्ली से मोहब्बत हुई, उसी मोहब्बत का सबूत कुतुब मीनार, हुमांयू का मकबरा, जामा मस्जिद और लाल किले की शक्ल में आज भी हमारी आंखों के सामने नुमाया है।..
 हज़रत निज़ामुद्दीन जैसे औलिया ने दिल्ली को अपनी दुआओं से नवाज़ा तो मिर्ज़ा ग़ालिब जैसे बेजोड़ शायर की गज़लो ने.. पुरानी दिल्ली की तंग गलियों से लेकर बहादुर शाह ज़फर के दीवाने खास तक मौजूद तमाम दिलों को धड़कने पर मजबूर कर दिया।...इस शहर ने कश्मीरी गेट को टूटते देखा, ज़फर को कैद होकर रंगून जाते देखा, लुटियन दिल्ली को बनते देखा, आज़ादी के परवानो को फिरंगी हुकुमत के आतिशदानों में जलते देखा।.. इसी शहर ने फिर इंकलाब देखा, आज़ाद हिंदुस्तान की खुशबू को महसूस किया और लाल किले पर संयुक्त भारत का पहला झंडा लहराते देखा ।.. आज़ाद भारत एक लोकतांत्रिक देश, जिसका अर्थ है कि जहां कोई राजा न हो बल्कि प्रजा खुद अपना नुमाईंदा चुनकर देश की संसद में भेजे.. ताकि उसकी ज़रूरतों और परेशानियों की आवाज़ बुलंद हो सके।.. 
लेकिन आज़ादी के इन 66 सालों में हुआ क्या, जनता की आवाज़ उठने के बाजाए हमने संसद में चिल्ला पुकारी सुनी, आरोप प्रत्यारोप सुनें, नोट उछलते देखे, लालछन लगते देखे और झड़पें होती देखीं... जनता की फरियाद, ज़रूरते और हक तो मानों इस शोर शराबे में कही दब से गए,, ऐसा लगता है जैसे संसद सत्तापक्ष और विपक्ष की भभौती हो।.. इन रहनुमाओं को तो हम ही ने चुनकर भेजा था तो फिर गलती कहाँ हुई, कमी कहाँ रही, क्या हमारे चयन में कमी थी, या फिर ये नेता ही कमियों की फैक्ट्री का प्रोडक्ट हैं, या फिर ये दिल्ली की सदियों पुरानी उस हवा के नशे का असर है जिसमें मदहोश होकर हुकमरान आवाम को नज़रअंदाज़ करते आये हैं।.. इस शहर ने तुर्क, मुगल, राजा, महाराजा, अंग्रेज़ो, अगैरा वगैरा सबके तख्त डगमगाते देखे हैं, इस शहर ने कई इंकलाब देखें हैं... ये शहर फिर से एक नया इंकलाब देख रहा है, ये इंकलाब कितना कारगर साबित होगा ये वक्त नहीं- दिल्ली बताएगी।...  

                                  
                                 आदिल खान..............