ये सियासत की दो विपरीत धाराओं का मधुर संगम
है.... ये संभावनाओं की तलाश में बहता विशाल सियासी समंदर है... ये अवसरवादिता को ज़रूरत
का जामा पहनाने वाला मंज़र है... इसे जो ना समझा वो नासमझ- जो समझ गया वो कलंदर है।...
ये वही लालू और नीतिश हैं जो पिछले 20 साल से एक दूसरे को पानी पीकर पीकर कोसते रहे...
एक दूसरे को अवसरवादी करार देते रहे... एक दूसरे की शक्ल तक ना देखने की बात करते रहे...
लेकिन आज एक दूसरे के पहलू में ऐसे सिमटे के गले लगे बिना ना रह सके।... दोनों के चहरों
का रंग सुर्ख सेबों की तरह हो गया... आज ये सुर्खी खुशी की थी... आज की मुलाकात बहुत
खास और ऐतिहासिक थी... इस मुलाकात के पीछे की कोशिशें जितनी बढ़ी थीं.. उससे भी बढ़ी
थी इस मुलाकत की ज़रूरत।....
लोकसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद ही नीतिश
कुमार के गुमान का बुलबुला फूंट गया था... उन्हें पता चल गया के सुशासन के नाम का पीपा
पीटने से अब फायदा नही मिल पायेगा। ... एक ही सबज़ी बार बार किसी को भी पसंद नही आती
तो भला जनता को क्या आयेगी... लेकिन सबज़ियां तो और हैं नहीं।... लेहाज़ा नीतिश ने
नए मसालों और ईंधन की जुगाड़ की है... कांग्रेस से हाथ मिलाया है- लालू को गले लगाया
है... और साफ कर दिया है कि बिहार की 10 सीटों पर होने वाले चुनाव के लिए... तीनों
दोस्त एक साथ मिलकर दुश्मन का मुकाबला करेंगे.. बीजेपी को धूल चटा देंगे।...
बीजेपी को हराने के लिए कांग्रेस,
राजद, और जदयू ने हाथ मिलाया है... लिहाज़ा बीजेपी
नेताओं की पेशानी पर बल आ जाना भी लाज़िमी है ...क्योंकि लोकसभा चुनाव के बाद जनता
को अच्छे दिन भी दिखाई नहीं दिये और मंहगाई भी और ज़्यादा बढ़ गई।... लेकिन इस गठबंधन
को उपचुनाव में बीजेपी के खिलाफ अगर उम्मीद के मुताबिक कमयाबी नहीं मिली ...तो क्या
लालू और नीतिश के रिश्तों में आई ये गर्माहट कायम रहेगी ..या फिर ये दोस्ती ठंडी पड़
जायेगी ?.. इंतेज़ार कीजिए ...सब साफ हो जायेगा....क्योंकि अगला
मौसम ठंड का ही है।...
.................आदिल खान... ............